पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३६६

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निश्चय को ही उत्पन्न करे, यह नियत नहीं है। दूसरे, इन दोनो भावों के विषय भी भिन्न भिन्न मिलते हैं। देखिए, चिंता का आकार है "क्या होगा" "कैसा होगा" इत्यादि और वितर्क का आकार है "प्रायः इसका ऐसा होना उचित है" यह। एवं अर्थान्तरन्यास अलङ्कार के रूप में 'बिना आधार के......" इत्यादि कथन भी वितर्क के ही अनुकूल है, चिंता के नहीं।

२५-विषाद

वाञ्छित के सिद्ध न होने तथा राजा और गुरु आदि के अपराध आदिसे उत्पन्न होनेवाले पश्चाताप का नाम 'विषाद' है। उदाहरण लीजिए-

भास्करसूनावस्तं याते जाते च पाण्डवोत्कर्षे।
दुर्योधनस्य जीवित! कथमिव नाऽद्यापि निर्यासि॥
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अथए करन महारथी लही पांडवनि जीत।
कुरुपति के जीवन न तू अजहू भयो व्यतीत॥

दुर्योधन अपने-आप कहते हैं कि-सूर्यसुत कर्ण के अस्त हो जाने और पांडवों का विजय हो जाने पर भी, हे कर्ण के दर्शन पर्यंत ही जीनेवाले, अथवा ग्यारह अक्षौहिणियों के पतियों से प्रणाम किए जानेवाले, यद्वा प्रताप से पांडवों के तेज को न गिननेवाले, किंवा पांडवों को वनवासादि दुःख देनेवाले दुर्योधन के जीवन! तू आज भी किस तरह नहीं निकल रहा है? क्या अब भी और कोई दुःख देखना शेष रह गया है?