पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( २६१ )

यहाँ, यद्यपि "विधाता की उच्छं खलता आदि के दिखाई देने से उत्पन्न होनेवाली और उसकी-अनुचितकारितारूपी-निंदा के प्रकाशित होने से अनुभव में पानेवाली, विधाता के विषय में, कवि की असूया अभिव्यक्त होती है। यह कहा जा सकता है; तथापि यहाँ जो असूया के कार्य और कारण वर्णन किए गए हैं, वे ही अमर्ष के कार्य और कारण हो सकते हैं; अतः कार्य-कारणों की समानता के कारण वह अर्म से मिश्रित ही प्रतीत होती है, उससे रहित नहीं। यदि आप कहें कि इसी तरह आपके पूर्वोक्त उदाहरण (कुत्र शैवम्......) मे भी अमर्ष और असूया का मिश्रण क्यों नहीं कहा जा सकता? तो इसका उत्तर यह है कि जिस तरह दूसरे पद्य में विधाता का अपराध स्पष्ट प्रतीत होता है कि उसने राजकुमार को ऐसे आवश्यक समय पर उपस्थित न रहने दिया; इस तरह भगवान राम का कोई अपराध नहीं है, जिससे कि कवि की तरह वीरों का भी अमर्ष अभिव्यक्त हो। आप कहेंगे कि धनुषभंग करके राजाओं का मानमर्दन कर देना रामचंद्र का भी तो अपराध है। सो यह कहना ठीक नहीं; क्योंकि अत्यंत उन्नत कार्य करना वीर-पुरुषों का खभाव है वे उसे किसी का दिल दुखाने के लिये नहीं करते।

अब, यदि आप कहें कि-यहाँ चंद्रमा का वृत्तांत तो प्रसंगप्राप्त है नहीं; अतः यह मानना पड़ेगा कि उसके द्वारा प्रसंगप्राप्त राजकुमारादिकों का वृत्तांत ध्वनित होता है; सो