पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३७८

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कवि कहता है-काल के भी कालरूप भगवान श्रीकृष्णचंद्र को जब मथुरा मे आए सुना तो कंस कंपित हो गया, उसे साँस चढ़ने लगा और पृथिवी पर गिर पड़ा।

यहाँ भय विभाव है और काँपना, अधिक साँस लेना तथा गिर पड़ना आदि अनुभाव हैं।

३२-चपलता

अमर्ष आदि से उत्पन्न होनेवाली और कठोर वचन आदि को उत्पन्न करनेवाली चित्तवृत्ति को 'चपलता' कहते हैं। जैसा कि कहा है-

अमर्षप्रातिकूल्येरागद्वेषाश्च मत्सरः।
इति यत्र विभावाः स्युरनुभावास्तु भर्त्सनम्॥
वाक्पारुष्यं प्रहारश्च ताडनं वधवन्धने।
तश्चापलमनालोच्य कार्यकारित्वमिष्यते॥इति॥

अर्थात् जिसमे अमर्ष, प्रतिकूलता, ईर्ष्या, प्रेम, द्वेष और असहिष्णुता ये विभाव हों और धमकाना, वचन की कठोरता, चोट पहुँचाना, पीटना, मारना और कैद करना ये अनुभाव हों, उसे 'चपलता' कहते हैं, जिसे कि 'बिना सोचे विचारे काम करना' समझिए। उदाहरण लीजिए-

अहितव्रत! पापात्मन्! मैवं मे दर्शयाऽननम्।
आत्मानं तुमिच्छामि येन त्वमसि भावितः॥
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