पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३८

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५—जगदाभरण—इसमें शाहजहाँ के पुत्र दाराशिकोह की प्रशंसा है। काव्यमाला के संपादक का कथन है कि प्राणाभरण में और इसमें इतना ही भेद है कि इसमें प्राणनारायण के नाम के स्थान पर दाराशिकोह का नाम है।

६—पीयूषलहरी—इसका सुप्रसिद्ध नाम गंगालहरी है और यह अनेक जगह अनेक बार छप चुकी है।

७—प्राणाभरण—इसमें नैपालनरेश प्राणनारायण का वर्णन है और यह काव्य-माला में छप चुका है।

८—भामिनीविलास—यह पण्डितराज के पद्यों का संग्रह है और अनेक बार छप चुका है।

९—मनोरमाकुचमर्दन—यह सिद्धान्तकौमुदी की मनोरमा व्याख्या का खंडन है, पर इसका प्रचार नहीं है।

१०—यमुनावर्णन—यह ग्रंथ गद्य में लिखा गया है; क्योंकि रसगंगाधर के उदाहरणों में इसके दो तीन गद्यांश उद्धृत किए गए हैं; पर मिलता नहीं।

११—लक्ष्मीलहरी—इसमें लक्ष्मीजी की स्तुति है और यह काव्यमाला आदि में छप चुकी है।

१२—रसगंगाधर—यह आपके सामने प्रस्तुत है। पंडितराज का सबसे प्रौढ़ और मुख्य ग्रंथ यही है; परंतु आज दिन तक न यह पूरा मिल सका और न पूरा मिलने की अब आशा है।

कुछ लोगों का कथन है कि इनके अतिरिक्त 'शशिसेना',