पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३८०

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चाहिए; तो हम कहते हैं कि अधिकता भी वस्तु के स्वाभाविक रूप से वो विलक्षण होती है अर्थात् स्वाभाविक रूप में और अधिकता में भेद होता है, यह तो अवश्य ही मानना पड़ेगा। बस, तो उसी पदार्थ का नाम चपलता है; अर्थात् प्रकृष्ट अमर्ष ही चपलता कहलाता है।

३३-निर्वेद

जो नीच पुरुषों में गालियाँ मिलने, तिरस्कार होने, रोगी हो जाने, पिट जाने, दरिद्र होने, वांछित के न मिलने और दूसरे की संपत्ति देखने आदि से और उत्तम पुरुषों में अवज्ञामादि से उत्पन्न होती है और जिसका नाम विषयों से द्वेष है, तथा जिसके कारण रोना, लंबे सॉस और चेहरे पर दीनता आदि उत्पन्न हो जाते हैं, उस चित्तवृत्ति का नाम 'निर्वेद' है। उदाहरण लीजिए-

यदि लक्ष्मण! सा मृगेक्षणा न मदीशासरणिसमेष्यति।
अमुना जडजीवितेन मे जगता वा विफलेन किं फलम्॥
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लछमन, जो वह मृगनयनि मो नैननि ना आय।
या जड़जीवन अरु विफल जग ते का फल हाय॥

श्रीरामचंद्र सीता के वियोग में लक्ष्मण से कह रहे हैं-हे लक्ष्मण! यदि वह मृगनयनी मेरै नेत्रपथ में न आवेगी-मुझे न दिखाई देगी, तो इस जड़-अर्थात् चेष्टा-रहित-जीवन