पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३८४

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चपलता से धृष्टता का सूक्ष्म भेद है; तथापि ये भाव एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते अर्थात् जहाँ असूया होगी वहाँ मात्सर्य अवश्य ही होगा-इत्यादि; अतः इन्हे उनसे पृथक नहीं माना गया; क्योंकि जहाँ तक मुनि (भरत) के वचन का पालन हो सके, उच्छृंखलता करना अनुचित है।

इन संचारी भावों मे से कुछ भाव ऐसे भी हैं, जो दूसरे भावों के विभाव और अनुभाव हो जाते हैं; जैसे ईर्ष्या निवेद का विभाव है और असूया का अनुभाव; चिंता*[१] निद्रा का विभाव है और औत्सुक्य का अनुभाव इत्यादि स्वयं सोच लेना चाहिए।

रसाभास

अच्छा, अब रसाभास की बात सुनिए। उसके लक्षण के विषय में कुछ विद्वानों का मत है-"अनुचित विभाव को आलंबन मानकर यदि रति आदि का अनुभव किया जाय तो 'रसाभास' हो जाता है। रहा यह कि किस विभाव को अनुचित मानना चाहिए और किसको उचित, सो यह लोकव्यवहार से समझ लेना चाहिए। अर्थात् जिसके विषय मे लोगों की यह बुद्धि है कि 'यह अयोग्य है', वही अनुचित है।" पर दूसरे विद्वान इस लक्ष्य को सुनकर चुप नहीं


  1. * चिंता को निद्रा का विभाव बताना कहाँ तक ठीक है, इसे सहृदय पुरुष सोच देखें।

    -अनुवादक