पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३९

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'पंडितराजशतक' नामक दो और ग्रंथ भी पंडितराज के बनाए हुए हैं; पर वे देखने मे नहीं आते।

अंतिम ग्रंथ

काव्यमाला-संपादक का कथन है कि—रसगंगाधर पंडितराज का अंतिम ग्रंथ नहीं है, इसके बनाने के अनंतर भी वे जीवित रहे। इसका कारण वे यह बताते हैं कि पंडितराज ने इसके अनंतर 'चित्रमीमांसाखंडन' लिखा है। पर, हमारी समझ में, यह हेतु यथेष्ट नहीं। इसका कारण यह है कि 'चित्रमीमांसाखंडन' कोई स्वतंत्र ग्रंथ नहीं है, उसमें रसगंगाधर के वे अंश, जिनमें उस पुस्तक का खंडन आया है, ज्यों के त्यों संगृहीत कर लिए गए हैं। संग्रह का कारण यह प्रतीत होता है कि उस समय आज-कल की तरह मुद्रण-कला का प्रचार नहीं था, इस कारण किसी भी ग्रंथ का दूर देशों तक प्रचार बहुत विलंब से होता था और पंडितराज को अप्पय दीक्षित के हिमायतियों को उनकी भूलें दिखा देने की बहुत आतुरता थी, वे चाहते थे कि लोगों पर जो अप्पय दीक्षित का प्रभाव पड़ा हुआ है, वह मेरे सामने ही कम हो जाय। सो पूर्वोक्त संग्रह की अनेक प्रतियों, जो समग्र रसगंगाधर की अपेक्षा थोड़े समय और व्यय में हो सकती थीं और रसगंगाधर की समाप्ति के पूर्व ही उन लोगों के हाथों में पहुँचाई जा सकती थीं, लिखवाकर उन्होंने उन सब लोगों के पास भिजवा दी और आगे का ग्रंथ लिखते रहे।