पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( २७५ )

र्थात् जहाँ उपनायक (जार), मुनि और गुरु की स्त्री के विषय मे तथा अनेक नायकों के विषय मे प्रेम हो, एवं स्त्री-पुरुष दोनो में से एक को प्रेम हो और एक को नहीं, (वहाँ रसाभास हुआ करता है)। यहाँ मुनि और गुरु शब्द उपलक्षणरूप से आए है, अतः इन शब्दों से राजादिकों का भी ग्रहण समझ लेना चाहिए।

अच्छा, अब बताइए, निम्न-लिखित पद्य में क्या व्यंग्य है?

व्यानम्राश्चलिताश्चैव स्फारिताः परमाकुलाः।
पाण्डुपुत्रेषु पाञ्चाल्याः पतन्ति प्रथमा दशः॥
xxxx
परत पांडवन पै प्रथम द्रुपद-सुता के मंजु।
अतिनत, चंचल, विकसित रु अति व्याकुल दृग-कंजु॥

कवि कहता है कि-पांडवों के ऊपर, द्रौपदी की सबसे पहली दृष्टियाँ अत्यंत नम्र, चंचल, विकसित और परम व्याकुल होती हुई गिर रही हैं।

"यहाँ नम्रता से, युधिष्ठिर के विषय मे, धर्मात्मा होने के कारण, भक्तियुक्त होने को, चचलता से, भीमसेन के विषय मे, भारी डील-डौल होने के कारण, त्रास-युक्त होने को, विकसितता से, अर्जुन के विषय में, अलौकिक वीरता सुनने के कारण, हर्षयुक्त होने को तथा अत्यंत व्याकुल होने से, नकुल और सहदेव के विषय मे, परम सुंदर होने के कारण, उत्सु-