पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३९१

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कता को अभिव्यक्त करती हुई दृष्टियों के द्वारा द्रौपदी का अनेक नायकों के विषय मे प्रेम अभिव्यक्त होता है, इस कारण यहाँ रसाभास ही व्यंग्य है।" यह है नवीन विद्वानों का मत। पर प्राचीनों*[१] का तो मत है कि "अविवाहित अनेक नायकों के विषय मे होने पर ही रति आभास रूप होती है, अन्यथा नहीं; अतः यहाँ विवाहित नायकों के विषय मे प्रेम होने के कारण रस ही है।

विप्रलंभाभास

व्यत्यस्तं लपति क्षणं क्षणमयो मौनं समालम्बते
सर्वरिमन् विदधाति किञ्च विषये दृष्टिं निरालम्बनाम्।
श्वासं दीर्घमुरीकरोति न मनागङ्गषु धत्ते धृतिं
वैदेहीकमनीयताकवलितो हा! हन्त!! लङ्केश्वरः!!
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अटपट बोलत बैन छनहिं, छन मान रहत है।
सबहि वस्तु पै वेत दीठि, पै कछु न गहत है।
लेत सास अति दीह, तनिक हु न धीरज धारत।
हा! लंकेशहिँ जनक्सुता-सौंदर्य सँहारत॥

  1. * इस मत में अरुचि है, और उसका कारण यह है कि-जिस तरह अविवाहित अनेक नायकों से प्रेम अनुचित होता है, उसी प्रकार विवाहितों से भी। सो यहाँ विवाहित-अविवाहित का पचड़ा लगाना ठीक नही, और न लक्षण में ही विवाहित-अविवाहित के लिये पृथक व्यवस्था की गई है। यह है नागेश का अभिप्राय।