पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३९२

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श्रीमती जनकनंदिनी के सौदर्य से प्रस्त किया हुआ लंकेश्वर-रावण बड़ा बेहाल हो रहा है। वह थोड़ी देर अंटसंट वोलता है तो थोड़ी देर चुप हो जाता है। सब चीजों को देखता है, पर उसकी आँखें कहो जम नहीं पाता। वह लंबे सास लिया करता है और उसके अंगों मे तनिक भी धीरज नहीं है। कभी हाथ पटकता है कभी पैर, उससे थोड़ा भी शांत नहीं रहा जाता।

यहाँ सीता के विषय मे जो लंकेश का विरहावस्था का प्रेम है, से अनुभयनिष्ठ-केवल रावण में-होने के कारण और जगद्गुरु भगवान रामचंद्र की पत्नी के विषय में होने के कारण 'आभास' रूप है। उसे (प्रेम को) अटपट बोलने के द्वारा अभिव्यक्त होनेवाला उन्माद, चुप होने के द्वारा व्यक्त होनेवाला श्रम, आलंबनरहित देखने से अभिव्यक्त होनेवाला मोह, लंबे साँसो के द्वारा अभिव्यक्त होनेवाली चिंता और अंगों की अधीरता के द्वारा अभिव्यक्त होनेवाली व्याधि, ये संचारी भाव भी जगद्गुरु की पत्नी के विषय में होने के कारण आभासरूप होकर, पुष्ट करते हैं, और उनके द्वारा पुष्ट की हुई आभासरूप रवि इस पद्य को ध्वनि (उत्तमोत्तम काव्य) कहे जाने का कारण है।

इसी तरह क्लेशकारी कुपूत आदि के विषय मे वर्णन किया जानेवाला और वीतराग-अर्थात् संसार से प्रेम छोड़ देनेवाले-पुरुषों मे वर्णन किया जानेवाला शोक, ब्रह्मविद्या के अनधिकारी