पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/४००

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का लेशमात्र भी उपमर्द नहीं करते-परस्पर किचिन्मान भी नही दबाते-तथापि स्वयं काव्यप्रकाशकार ने ही, पाँचवें उल्लास में, इन सबकी शबलता को राजा की स्तुति में गुणीभूत बतलाया है। यदि आप कहें कि-"अनंतरभावी विशेषगुण से पूर्वभावी विशेष-गुण का नाश हो जाया करता है" यह नियम है, और चित्तवृत्तिरूप भावों का, नैयायिकों के सिद्धांत के अनुसार, इच्छा प्रादि विशेष-गुण मे समावेश होता है, अत: बिना पूर्वभाव का नाश हुए उत्तर भाव उत्पन्न ही नहीं हो सकता, से आपका कहना ठीक नही। तो हम कहेंगे कि आप जिसकी बात कर रहे हैं, वह नाश न तो व्यंग्य होता है, न उसका नाम उपमर्द है, न चमत्कारी ही है कि उसे व्यंग्यों के भेदों मे पृथक् गिना जाय। इस कारण यों मानना चाहिए कि-

नारिकेलजलक्षीरसिताकदलमिश्रणे।
विलक्षणे यथाऽऽस्वादो भावानां संहतौ तथा॥

अर्थात् जिस तरह नारियल के जल, दूध, मिश्री और केलों के मिश्रण मे विलक्षण स्वाद उत्पन्न हो जाता है, उसी प्रकार भावों के मिश्रण में भी होता है। तात्पर्य यह कि-जैसे पूर्वोक्त नारियल के जल आदि पदार्थ, मिलने पर, एक दूसरे का स्वाद नष्ट नहीं करते, किंतु सब मिलकर, अपनाअपना स्वाद देते हुए भी, एक नया स्वाद उत्पन्न कर देते हैं;