पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/४०१

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उसी तरह भाव भी अपना अपना आस्वादन करवाते हुए भी एक नया आस्वादन उत्पन्न कर देते हैं।

भावशांति आदि की ध्वनियों में भाव प्रधान होते हैं, अथवा शांति आदि?

यहाँ यह समझ लेने का है कि जो ये भावाति, भावोदय, भावसंधि और भावशबलता की ध्वनियों उदाहरणों में दी गई हैं, वे भी भावध्वनियाँ ही हैं। जिस तरह विद्यमानता की अवस्था में भावों का प्रास्वादन किया जाने पर अवस्था का प्राधान्य नहीं, किंतु भावों का प्राधान्य माना जाता है, इसी प्रकार उत्पन्न होते हुए, विनाश होते हुए, एक दूसरे से सटते हुए और एक साथ रहते हुए आस्वादन किए जाने पर भी भावों की ही प्रधानता उचित है, क्योंकि चमत्कार का विश्राम वही (भाव की चर्वणा मे ही) जाकर होता है, केवल अवस्था मात्र मे नहीं। यद्यपि उत्पत्ति, विनाश, संधि और शबलता का तथा उनसे संबंध रखनेवाले भावों का-दोनों का-आस्वादन समानरूप मे होता है, अतः कौन प्रधान है और कौन अप्रधान यह नहो समझा जा सकता; तथापि जब स्थिति की अवस्था मे भावों की प्रधानता मानी जा चुकी है, तब भावशांति आदि मे भी जिनके शांति आदि हैं, उन अभिव्यक्त होनेवाले भावों मे ही प्रधानता की कल्पना करना उचित है। और यदि यह स्वीकार करोगे कि भावशांति आदि में भाव