पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/४०३

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के वाच्य होने पर भी जो उत्पत्ति से व्याप्त अमर्ष-भाव प्रधान है, उसके वाच्य न होने के कारण, इस पद्य को भावोदयध्वनि' कहना उचित ही है।

इसी तरह आपके मत मे भाव ध्वनित होता हो और शांति वाच्य हो, तो वहाँ भी भावशांति की ध्वनि न होगी। जैसे-

क्षमापणैकपदयोः पदयोः पतति प्रिये।
शेमुः सरोजनयना नयनारुणकान्तयः॥
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छमा करावन मुख्य थल चरन परे जब कांत।
कमलनयनि के नयन की अरुन काति भइ शात॥

एक सखी दूसरी सखी से कहती है कि क्षमा करवाने के सर्व प्रधान स्थान चरणों पर पति के गिरते ही कमलनयनी के नेत्रों की अरुण कांतियाँ शांत हो गई।

यदि आप कहें कि-इन पद्यों मे, शब्दो के द्वारा वाच्य जो शांति आदि हैं; उनका अन्वय अरुणकांति के साथ ही है, अमर्ष आदि भावों के साथ तो है नही; अतः यहाँ अरुणकाति के शांति आदि ही वाच्य हुए, न कि उनसे अभिव्यक्त होनेवाले रोषाति आदि। कारण, व्यंग्य और व्यंजक दोनों पृथक पृथक होते हैं-यह तो अवश्य मानना पड़ेगा; सो यहाँ अरुणकांति की शांति के वाच्य होने पर भी रोष की शांति व्यंग्य ही रही, क्योंकि अरुणकांति की शांति व्यंजक है और