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पद्य का प्रथमांश | पृष्ठांक | पद्य का प्रथमांश | पृष्ठांक |
रतिर्देवादिविषया | १२७ | विरुद्धैरविरुद्धैर्वा | ८६ |
रत्यादयः स्थायिभावाः | ८७ | वीक्ष्य वक्षसि | २८१ |
रसगङ्गाधरनामा | ८ | व्यत्यस्तं लपति | २७६ |
राघवविरहज्वाला | ४३ | व्यानम्नाश्चलिताश्चैव | २७५ |
ल | व्युत्पत्तिमुद्गिरन्ती | १९९ | |
लीलया विहितसिन्धु | २५४ | श | |
लोलालकावलि | १९० | शतेनोपायानां | २७१ |
व | शयिता शैवलशयने | २२० | |
वक्षोजाग्रं पाणिना | २४२ | शयिता सविधेऽप्यनीश्वरा | २७ |
वचने तव यत्र | १९३ | शार्ङ्गदेवेन गदितो | १२१ |
वाक्पारुष्यं प्रहारश्च | २६३ | शान्तस्य शमसाध्यत्वात् | ८२ |
वागर्थाविव संपृक्तौ | ९३ | शुण्डादण्डं कुण्डली | २१७ |
वाचा निर्मलया | १८१ | शून्यं वासगृहं | २०१ |
वाचो माङ्गलिकीः | ९४ | श्येनमम्बरतला | १२२ |
विधत्तां निश्शङ्क | १६३ | श्रमः खेदोऽध्वगत्यादेः | २२९ |
विधाय सा मद्वदना | २३० | श्रीतातपादैर्विहिते | ११९ |
विधिवञ्चितया मया | २१९ | श्रीमज्ज्ञानेन्द्रभिक्षोः | ४ |
विनिर्गतं मानदमात्म | ५१ | श्लेषः प्रसादः समता | १५३ |
विभावा यत्र दारिद्य | २२४ | स | |
विमानपर्यङ्कतले | १३२ | सच्छिन्नमूल: | ५१ |
विरहेण विकलहृदया | २१७ | सजातीयविजातीयैः | ८६ |