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पद्य का प्रथमांश | पृष्ठांक | पद्य का प्रथमांश | पृष्ठांक |
जनि कपोत तुहिं | ११० | ध | |
जनि कपोत-पोतहि | ११० | धनु-विदलन को शब्द | १०२ |
जब ते सखि दयितहि | २५६ | धरत मोहि कूजत | २१६ |
जलन विपिन के | १६७ | धरी बनाइ नवीन | ७ |
जाचक जन हित | १०६ | धाइ-धाइ हौं धरनि | २१८ |
जिनकी लीला ते | ४ | न | |
जिन ज्ञानेद्र भिक्षु ते | ४ | नभ ते झपटत | १२३ |
जेहि पिय-गुन सुमिरत | २४९ | नभ लाली चालो | १९९ |
जो किकर किय | १७७ | नव-जौबन की बाढ़ ते | १०० |
जोबन उदगम तें | २८२ | नव दुलहिन भुज | २७४ |
जो सीतहिं मैं मृतक | २८३ | ना धन ना नृप संपदा | २६७ |
नासमान सब जगत | २३४ | ||
त | नैन-कोन को मिलन | ९६ | |
तप करते मुनि वदन | १६९ | प | |
तरनि-तनूजा-तट | ३ | परत आँसुवन रोध | २५४ |
थ | परत पांडवन पै | २७५ | |
थावर जंगम जगत | ११७ | पल्लवजयिनी अधर | २२५ |
द | पहर पाछले सुनयनिहि | २३९ | |
दादाजी किय दंग | १२० | पिय आए अति दूर ते | २५७ |
दीन देवतनि दशवदन | १११ | पिय-गौन-समै | ९४ |
देखि भामिनी दयित-उर | २८१ | पिय चूचुकनि | २४२ |