पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/४५

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किसी विषय का कहनेवाला[१] अथवा प्रतिपादन करनेवाला होता है और कोषकार उसे पंडित[२] शब्द का पर्यायवाची मानते हैं। अतः व्याकरण और कोष दोनों, अथवा यों कहिए कि योग और रूढ़ि दोनों, की दृष्टि से एक साथ विचार करने पर इस शब्द का अर्थ 'किसी विषय का प्रतिपादन करनेवाला विद्वान्' होता है। इसी बात को सीधे शब्दों में यों कह सकते हैं कि कवि उस जानकार का नाम है, जो अपनी जानी हुई बातों का प्रतिपादन कर सके।

शुरू शुरू में यह शब्द इसी अर्थ मे व्यवहृत होता था। अतएव सर्वज्ञ और, वेदों के द्वारा, सब पदार्थों का सूक्ष्म रूप से प्रतिपादन करनेवाले जगदीश्वर के लिये वेदों में इस शब्द का प्रयोग हुआ है—"कविर्मनीषी परिभूः स्वयंभूः" (शुक्लयजुः-संहिता अ॰ ४० मं॰ ८)। इसी प्रकार वेदों के सर्व-प्रथम विद्वान् और प्रकाशयिता ब्रह्मा को भी पुराणों में "आदिकवि" कहा गया है—"तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये (श्रीमद्भागवत १-१-१)। जिस तरह वैदिक वाणी के प्रथम-प्रकाशक ब्रह्मा को यह पदवी प्राप्त हुई, उसी प्रकार लौकिक वाणी में सर्वप्रथम वर्णयिता महर्षि वाल्मीकि भी "आदिकवि" की पदवी से विभूषित किए गए। उनके अनंतर महाभारत जैसे


  1. 'कुङ्-शब्दे' कवते इति कविः, 'कबृवर्णे' इत्यनेन तु नेदं सिध्यति, तस्य पवर्गीयोपधत्वात्।
  2. 'संख्यावान् पंडितः कविः' इत्यमरः।