पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/६०

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प्रतिभा, जिसे शक्ति भी कहा जाता है, है, इस विषय में तो आज दिन तक न किसी को विप्रतिपत्ति हुई और न आगे कभी हो सकती है। पर मतभेद एक तो इस बात में है कि कुछ विद्वान् केवल प्रतिभा को ही काव्य का कारण मानते हैं और कुछ प्रतिभा के साथ व्युत्पत्ति और अभ्यास को और जोड़ते हैं। अर्थात् कुछ विद्वानों के हिसाब से काव्य का एक कारण है 'प्रतिभा'; और कुछ के हिसाब से तीन हैं—प्रतिभा, व्युत्पत्ति और अभ्यास। प्रतिभा क्या पदार्थ है, यह विषय भी विवादग्रस्त है।

अब देखिए, काव्य का एक कारण माननेवालों में रुद्रट, वामन और पंडितराज आदि विद्वान हैं; और तीन माननेवालों में दंडी, मम्मट, वाग्भट और पीयूषवर्ष आदि हैं। अब इन विद्वानों के विचारों को सुनिए और उन पर एक आलोचनात्मक दृष्टि डाल जाइए।

इनमें से प्राचीनतर आचार्य दंडी का कहना है कि—

नैसर्गिकी च प्रतिभा, श्रुतं च बहु निर्मलम्,
अमन्दश्चाऽभियोगोऽस्याः कारणं काव्यसंपदः।

अर्थात् स्वतःसिद्ध प्रतिभा, अत्यंत और निर्दोष शास्त्रअवण—अर्थात् व्युत्पत्ति, तथा अनल्प[१] अभ्यास—अर्थात्


  1. 'अभियोगः पौनःपुन्येनाऽनुसन्धानम्' इति बीकानेरराजकीय। पुस्तकालयस्था लिखिता काव्यादर्शव्याख्या। स चाऽभ्यास एवेत्यस्मदुक्तेऽर्थे न वाचन विप्रतिपत्तिः।