पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/६२

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अर्थात् जिसके होने पर, अच्छी तरह एकाग्र किए हुए मन में अनेक प्रकार के अर्थों की स्फूर्ति होती है, और अक्लिष्ट अर्थात् सरल और सुंदर पद सूझ पड़ते हैं, उसका नाम शक्ति है। फिर वे आगे लिखते हैं कि—

सहजोत्पाद्या च सा द्विधा भवति।
उत्पाद्या तु कथञ्चिद् व्युत्पत्त्या जन्यते परया।

अर्थात् वह शक्ति दो प्रकार की होती है—एक सहज—अर्थात् स्वतः सिद्ध, और दूसरी उत्पाद्य—अर्थात् उत्पन्न की जानेवाली। उनमें से सहज शक्ति तो ईश्वरदत्त अथवा अदृष्टजन्य होती है; अतः उसके विषय में तो कुछ कहना है नहीं; पर जो उत्पाद्य शक्ति है, वह अत्यंत उत्कृष्ट व्युत्पत्ति से उत्पन्न की जाती है। इससे यह सिद्ध होता है कि प्रतिभा दो तरह की है; जिनमें से एक का कारण अदृष्ट है और दूसरी का व्युत्पत्ति।

उनके बाद वामन ने भी काव्य का कारण केवल प्रतिभा को ही माना है। वे लिखते हैं कि "कवित्वबीजं प्रतिभानम्" और उसका विवरण यों करते हैं कि "कवित्वस्य बीजं संस्कारविशेषः कश्चित; यस्माद्विना काव्यं न निष्पद्यते, निष्पन्नं वा हास्यायतनं स्यात्"। अर्थात् कविता का कारण एक विशेष प्रकार का संस्कार है, जिसके बिना काव्य नहीं बन पाता, अथवा यों कहिए कि बना हुआ भी हँसी का पात्र होता है, उसे सुनकर लोग उसकी खिल्ली उड़ाते हैं।