पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/७१

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तक ही सीमित नहीं रहता, किंतु जो लोग उसके सुहृत्, संबंधी अथवा हितैषी होते हैं, जिनमें ईर्ष्या-द्वेष की प्रवृत्ति उस आनंद के अनुभव का प्रतिबंध नहीं करती, वे भी आनंदित हो उठते हैं, और उससे सहानुभूति प्रकट करने लगते हैं। बच्चों में यह बात बहुत स्पष्ट रूप से देख पड़ती है। यही उछल-कूद नाट्य की आदि-जननी है। शुरू शुरू में इष्टप्राप्ति अथवा अनिष्टनिवृत्ति के समय उसका प्राप्त करनेवाला और उससे सहानुभूति रखनेवाले लोग इसी तरह उछल-कूद किया करते थे।

पर, प्रकृति का एक नियम और है। मनुष्य को वास्तविक वस्तुओं के देखने में जो आनंद प्राप्त होता है, उससे कही अधिक उसका अनुकरण देखने में प्राप्त होता है। उदाहरण के लिये कल्पना कीजिए कि एक सिटल्लू बनिया आपका पड़ोसी है, जिसे आप सदा देखा करते हैं, और उसकी चालढाल आदि को देखकर आपको कुछ कौतुक भी हुआ करता है; पर उसके देखने में आपको वह आनंद नहीं आ सकता, जिसे कि एक भाँड़ अथवा बहुरूपिया उन्हीं सेठजी की नक़ल दिखलाकर अनुभूत करा सकता है।

इसके बाद एक बात और भी है। वह यह कि वास्तविक एवं वर्त्तमान व्यक्ति के हर्षादि के अनुकरण में हमें सहानुभूति भी नहीं हो सकती। क्योंकि, उसके वर्त्तमान होने से हमारा उसके साथ किसी न किसी प्रकार का राग-द्वेषमूलक संबंध हो जाता है; इसलिये उस अनुकरण को देखकर राग-द्वेष की