पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/७२

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प्रवृत्तियाँ जग उठती हैं, और वे सहानुभूति में, और कभी कभी तो अभिनय में ही, बाधक हो जाती हैं, और बिना सहानुभूति के आनंद की अभिव्यक्ति होती नहीं। इस कारण, यदि किसी प्राचीन अथवा कल्पित घटना का अनुकरण किया जाय तो उस घटना से संवद्ध व्यक्तियों के साथ हमारा आधुनिक संबंध न होने के कारण हमें अभिनय के द्वारा उद्घोधित आनंद का यथार्थ अनुभव हो सकता है, क्योंकि वहाँ बाधक प्रवृत्तियाँ नहीं रहतीं। अतएव अंततोगत्वा मनुष्यों के मनोरंजन के लिये इस तरह के अनुकरणमूलक अभिनय होने लगे।

इन अभिनयों के लिये कवि लोग प्राचीन अथवा कल्पित घटनाओं को पद्यादिबद्ध कर देते थे, जिससे वे और भी अधिक रोचक हो जायँ, जैसे कि आज-कल भी कई-एक ग्राम्य खेलों में होता है। इन्हीं अभिनयों का विकसित रूप हैं आपके दृश्य-काव्य और आधुनिक नाटक-ड्रामा आदि। बस, दृश्य-काव्यों की बात हम इतनी ही करेंगे; क्योकि हमारे इस प्रकरण से इसका इतना ही संबंध है।

१—प्रारंभ ही प्रारंभ में लोग जब इन अभिनयों को देखने लगे तब उन्हें अनुभव हुआ कि इनमें कुछ आनंद अवश्य है। साथ ही उनमें से जो लोग बुद्धिमान् और तर्कशील थे, उन्होंने सोचना शुरू किया कि इस नाट्य की वस्तुओं में से यह आनंद किस वस्तु में रहता है। फिर क्या था, उसकी खोज