पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/८३

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से? आपको विवश होकर यही कहना पड़ेगा कि दुष्यंत से; क्योकि काव्य में वर्णित शकुंतला का प्रेम नट से तो हो नहीं सकता। पर यदि ऐसा माने तो यह शंका उत्पन्न होती है कि भला, उस दुष्यंत के प्रेम से सामाजिक (दर्शक) लोगों को कैसे आनंद मिल सकता है; क्योकि दुष्यंत तो उनके सामने है नही, है तो नट! इसका समाधान वे यह करते हैं कि सामाजिक लोग नट को उसी रंग-ढंग का देखकर उस पर दुष्यंत का आरोप कर लेते हैं—अर्थात् उसे झूठे ही दुष्यंत समझ लेते हैं। बस, इसी कारण उन्हें आनंद प्राप्त होता है, दूसरा कुछ नहीं। यह मत प्रस्तुत पुस्तक में पाँचवा है।

७—पर, इसी सूत्र के द्वितीय व्याख्याकार आचार्य श्री-शंकुक को, जिनकी व्याख्यान्यायशास्त्र के अनुसार मानी जाती है, यह बात न जँची। उन्होंने कहा—आप जो यह कह रहे हैं कि "रस मुख्यतया दुष्यंत आदि में रहता है, और नट पर उसका आरोप कर लिया जाता है" सो ठीक नहीं। इसका कारण यह है कि खींच खाँचकर नट पर रस का आरोप कर लेने पर भी दर्शक लोगों से तो उसका कुछ संबंध हुआ नही; फिर बताइए, उन्हें किस तरह आनंद आ सकता है? यदि आप कहें कि उन्हें नट के ऊपर आरोपित रस का ज्ञान होता है—वे उसे जानते हैं; अतः उन्हें आनंद का अनुभव होता है, तो यह भी ठीक नहीं; क्योंकि, यदि जान लेने मात्र से ही आनंद प्राप्त होता हो तो यदि कोई रस शब्द बोले