पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/८७

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कहना कि "रस का अनुमान किया जाता है", उचित नहीं। क्योंकि, संसार में जो यह बात प्रसिद्ध है कि प्रत्यक्ष ज्ञान से आनंद प्राप्त होता है, अनुमानादि से नहीं, उसका तिरस्कार करके यह कल्पना करना कि "रति-आदि की सुंदरता के बल से अनुमान करने पर भी आनंद प्राप्त हो जाता है" ठीक नहीं। यदि कहो कि सूत्र का अर्थ इसी तरह अनुकूल होता है, तो यह भी ठीक नहीं; क्योंकि उसका अर्थ दूसरी तरह भी ठीक किया जा सकता है।

अतः यह मानना चाहिए कि काव्य की तीन क्रियाएँ हैं—अर्थात् वह तीन हरकते पैदा करता है। उनमें से एक है अभिधा, जिसके द्वारा काव्य का अर्थ समझा जाता है; दूसरी है भावना—अर्थात् उस अर्थ का अनुसंधान, जिसके द्वारा काव्य में वर्णित नायक-नायिका आदि पात्रों की विशेषता निवृत्त हो जाती है और वे साधारण बनकर हमारे रसास्वादन के अनुकूल हो जाते हैं, और तीसरी है भोग—अर्थात् आत्मानंद में विश्राम, जिसके द्वारा हम रस का अनुभव करते हैं, अथवा जो स्वयं ही रसरूप है। इस तरह काव्य की क्रियाओं से ही हमारा सब कार्य सिद्ध हो जाता है, न आरोप की आवश्यकता रहती है, न अनुमान की। यह मत प्रस्तुत पुस्तक में दूसरा है।

९—पर, आचार्य अभिनव गुप्त ने, जो 'ध्वन्यालोक' की 'लोचन' नामक व्याख्या के निर्माता हैं, जिनका साहित्यशास्त्र