पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/९८

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सूक्ष्मता, गंभीरता, विस्तर, संक्षेप, संमितत्व, भाविक, गति, रीति, उक्ति और प्रौढि इस तरह चौदह अन्य गुण मानकर इनकी संख्या चौबीस कर दी है। पर इन सब का समावेश प्रायः वामन के गुणों में हो जाता है, अतः इसे आप केवल नाम-भेद सा ही समझिए।

इन सबके अनंतर वाग्भट ने दंडी के, और पीयूषवर्ष ने भरत के, मत का पुनः स्पर्श किया है। उनमें से वाग्भट ने तो प्रायः दंडी के गुणों का अनुवाद कर दिया है, सो उसे तो अतिरिक्त मत कहा ही नहीं जा सकता। हाँ, पीयूषवर्ष ने भरत के दस गुणों में से कांति को शृंगार-रस में और अर्थव्यक्ति को प्रसाद-गुण में समाविष्ट करके उन्हें आठ ही रख लिया है, और एकाध गुण के लक्षण में भेद भी कर दिया है; पर कोई नई बात उसमें भी नहीं है।

इस सबका तात्पर्य यह हुआ कि भरत ने दस गुण माने, अग्निपुराण ने उन्नीस, भामह ने तीन, दंडी ने पुनः दस, वामन ने बीस, भोजदेव ने चौबीस, वाग्भट ने पुनः दस और पीयूषवर्ष ने आठ। इसके अतिरिक्त प्रत्येक आचार्य ने इनके लक्षणों में