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हिन्दी-राष्ट्र
 

पुर के बाद राष्ट्र का स्थान है। राष्ट्र के बाद राष्ट्र संघ और सम्पूर्ण मनुष्य समाज की कल्पना होती है। इन स्वाभाविक समानताओं के बन्धन निम्नलिखित हो सकते हैं :—

(१) देश-सम्बन्धी एकता (२) हानि लाभ की एकता (३) राज्य की एकता (४) भाषा की एकता (५) धर्म्म की एकता (६) वर्ग को एकता और (७) इस एकता का अभिमान जो ऐतिहासिक पूर्वजों के गौरव व अन्य ऐसे ही कारणों से उत्पन्न होता है।

पहला लक्षण : देश सम्बन्धी एकता

सब से प्रथम स्थान देश-सम्बन्धी एकता का है। एक राष्ट्र कहलाने वाले जन-समुदाय का संसार में कोई देश या भूमि-भाग अवश्य होना चाहिए। देश राष्ट्र-रूपी व्यक्ति का शरीर है जिसके बिना राष्ट्र की कल्पना करना हो दुस्तर है। संसार के इतिहास में यहूदियों के समान बहुत से ऐसे अभागे समुदायों का वर्णन मिलता है जो अपने देश के छिन जाने से बिना घर के आदमी की तरह संसार में मारे मारे फिरते हैं। इनका बल दिन-दिन क्षीण होता जाता है और यदि ये किसी नये देश को अपना घर नहीं बना लेते हैं तो इनके समूल नष्ट होने में अधिक दिन नहीं लगते। एक राष्ट्र के व्यक्ति यदि थोड़े दिनों के लिये दूसरे देश में चले जावें तो इससे कोई हानि नहीं होती। परिवार में भी तो अतिथि आया जाया करते हैं। भारत में शासन के लिये कुछ समय को आने से अंग्रेज़ों को राष्ट्रीयता पर कोई विशेष प्रभाव