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दूसरा लक्षण : हानि-लाभ की एकता

राष्ट्र का दूसरा तथा प्रधान लक्षण जन-समुदाय के हानि-लाभ का एक होना है। एकता के अन्य बन्धनों के होते हुए भी अर्थसम्बन्धी बन्धन मुख्य है। संसार के इतिहास में यद्यपि धर्म का प्रभाव सर्व प्रधान दिखलाई पड़ता है, किन्तु अर्थ के आगे वह भी गौण हो जाता है। अर्थ के बन्धन में बँधे हुये भीष्मपितामह और द्रोणाचार्य जैसे गुरु-जन भी अधर्म करने को उद्यत हो गये थे। अर्थ-सम्बन्धी एकता होने से राष्ट्र में धन के बढ़ जाने से उसका प्रभाव सम्पूर्ण जन-समुदाय पर पड़ता है तथा घट जाने से राष्ट्र का प्रत्येक व्यक्ति उसका अनुभव करता है। भारतवर्ष का विशाल राज्य मिल जाने से इंगलैंड के संपूर्ण जन-समुदाय की आर्थिक अवस्था सुधर गई; किन्तु फ़्रांस पर इसका कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा, क्योंकि वह भिन्न राष्ट्र है। पिछले महायुद्ध में हार जाने से जर्मनी को जुर्माने का रुपया देना पड़ रहा है; उसको प्रत्येक जर्मन अनुभव करता है। इस जुर्माने में जो अंश फ़्रांस को मिलता है उसका उपयोग फ़्रांस के राष्ट्रीय कार्यों में किया जा रहा है जिससे प्रत्येक फ़्रांसीसी को लाभ पहुँचता है। इस आर्थिक हानि-लाभ के भिन्न होने के कारण फ़्रांस तथा जर्मन राष्ट्र बिलकुल भिन्न हैं। इतिहास के पढ़ने वाले जानते ही हैं कि इंगलैंड और फ़्रांस की पुश्तैनी दुश्मनी में आर्थिक विभिन्नता एक मुख्य कारण है।

राष्ट्र के हानि-लाभ का प्रभाव प्रत्येक व्यक्ति पर बराबर नहीं पड़ता है। यह व्यक्ति को विशेष परिस्थिति के ऊपर निर्भर होता