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राष्ट्र के लक्षण
 

है। परिवार में एक व्यक्ति कमा कर लाता है तथा दूसरे लोग उसका उपयोग करते हैं। बच्चे व बुड्ढे बिना कुछ सहायता दिये ही व्यय करते हैं, लेकिन इस कारण उनसे कोई द्वेष नहीं करता। सम्पूर्ण परिवार के लिये अन्त में जो बात लाभकर होती है उसी पर सब लोगों का ध्यान रहता है। ठीक यही अवस्था राष्ट्र की भी है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी अपनी शक्ति के अनुसार राष्ट्र के कार्य में सहायता देता है, और उस व्यक्ति की साधारण आवश्यकताओं को पूर्ण करने का भार राष्ट्र पर रहता है। राष्ट्र में भी कुछ लोग पूंजी के समान होते हैं और कुछ को पेन्शन देनी होती है। हानिलाभ की विभिन्नता का यह तात्पर्य नहीं है कि एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र से लड़ता रहे। प्रत्येक परिवार का आय-व्यय अलग होता है किन्तु इस कारण से परिवारों में आपस में झगड़ा रहे यह आवश्यक नहीं है। हाँ, यदि एक परिवार के लोग किसी दूसरे परिवार के धन की ओर कुदृष्टि से देखेंगे तो झगड़ा होना स्वाभाविक है।

तीसरा लक्षण : राज्य की एकता

जैसे देश राष्ट्र का शरीर है वैसे ही राज्य-शक्ति राष्ट्र का शारीरिक बल है। राष्ट्र के प्रत्येक अंग को नियमित रूप से चलाने और सुरक्षित रखने के लिये राज्य-शक्ति नितान्त आवश्यक है। यदि राष्ट्र का अपना दृढ़ राज्य नहीं है तो राष्ट्र का प्रत्येक अंग निर्जीव हो जायगा, देश के टुकड़े टुकड़े हो जायेंगे और सम्पत्ति अन्य राष्ट्र छीन लेंगे। राष्ट्र-भाषा मरने लगेगी; धर्म का नाश होने लगेग तथा सामाजिक सङ्गठन जड़ से हिल जायगा। जिस राष्ट्र