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हिन्दी‌-राष्ट्र
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में पाये जाने वाले बहुत से बाहर के लोगों की भाषाओं की गिनती भी इसमें कर ली गयी है, किन्तु तो भी कुछ भाषाओं का तो पृथक् अस्तित्व मानना ही पड़ेगा। आसामी, बङ्गाली, उड़िया, हिन्दी, पंजाबी, काश्मीरी, सिन्धी, गुजराती, मराठी, तेलगू, तामिल, कनारी, मलयालम सथा सिंहाली इनके एक दूसरे से पृथक् होने के सम्बन्ध में तो कोई भ्रम ही नहीं हो सकता। ये भाषाएँ एक दूसरे से इतनी भिन्न हैं कि एक का बोलने वाला दूसरे की बोली नहीं समझ सकता। बङ्गाली किसान अपना दुःख-सुख मराठी किसान से नहीं कह सकता। उड़िया गुजराती से बात-चीत नहीं कर सकता। इन भाषाओं का अपना पृथक् पृथक् प्राचीन साहित्य है जिन पर इन भाषा-भाषियों का गौरव करना उचित ही है। ज्ञानेश्वर, रामदास, तुकाराम, तथा तिलक मराठी बोलने वालों के अपने कवि तथा लेखक हैं, जैसे चण्डीदास, काशीराम, भारतचन्द्र राय बङ्गाली बोलने वालों के अपने हैं। आजकल भी इन भाषाओं के पृथक् पृथक् अपने कवि तथा लेखक हैं, अपने समाचारपत्र तथा पत्रिकाएँ हैं, अपने अपने ढंग पर वर्तमान साहित्य बन रहा है। भारत की इन भाषाओं की तुलना योरप की अंग्रेज़ी, फ्रेंच, जर्मन, इटालियन, स्पेनिश, पोर्तगीज़ इत्यादि भाषाओं से की जा सकती है, केवल अन्तर इतना ही है कि योरपीय भाषा-भाषियों के स्वतंत्र होने के कारण इनकी भाषाओं का विकास भारतीय भाषाओं की अपेक्षा प्रायः अधिक हो चुका है।