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क्या भारत एक राष्ट्र है?
 

इत्यादि जनपदों पर शासन करते थे, किन्तु इसका अर्थ केवल इतना ही था कि इन जनपदों के राजाओं ने कुरु जनपद के राजा को अपने से अधिक शक्तिशाली मान लिया था। युधिष्ठिर या दशरथ इसी प्रकार के राजा थे। यदि कोई साधारण राजा चक्र- वर्ती राजा के अधिक शक्तिशाली होने में सन्देह करता था तो दोनों के बीच में युद्ध होता था। इस अवस्था में हार जाने पर या तो वह राजा दूसरे का चक्रवर्तित्व स्वीकार कर लेता था या युद्ध में मारे जाने पर उस जनपद का राजशासन वहाँ के उत्तराधिकारी को दे दिया जाता था। चक्रवर्ती राज़ा दूसरे जनपदों को अपने राज्य में कभी नहीं मिलाता था। इस बात के सैकड़ों उदाहरण प्राचीन भारत के इतिहास में मिलते हैं। चक्रवर्ती राज्य और साम्राज्य के इस भेद के सदा ध्यान में रखना चाहिए। साम्राज्य का रोग भारत में बौद्ध काल से आरम्भ हुआ। अशोक के साम्राज्य की कुञ्जी धार्मिक दिग्विजय थी, राजनीतिक दिग्विजय नहीं। यह सूक्ष्म भेद बहुत देर नहीं ठहर सकता था। धीरे-धीरे इस साम्राज्य के रोग ने उत्तर भारत के स्वतन्त्र जनपदों के अस्तित्व को नष्ट कर दिया। लोग अपने अपने जनपदों की स्वतन्त्र सत्ता को भूल गए। विदेशियों के आक्रमण के समय इस जनपद या प्राचीन राष्ट्रीय अस्तित्व के नष्ट हो जाने से जो हानि हुई उसका फल आज तक भारतवासी भोग रहे हैं।

भारत में पृथक् राज्य स्थापित होने से आपस में लड़ाई रहा। करेगी, अतः पृथक् राज्य बनाना अनुचित होगा इत्यादि बातें वर्त-