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हिन्दी-राष्ट्र
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मान विषय से बाहर की हैं। इस सम्बन्ध में इतना कहना पर्याप्त होगा कि योरप के महायुद्ध के कारण यह कोई नहीं कहता है कि वहाँ के राज्यों को स्वतंत्र नहीं रखना चाहिए, क्योंकि वे आपस में इस भयङ्कर रीति से लड़ते हैं। भारत की आजकल की शान्ति का कारण एक राज्य का होना नहीं है, किन्तु उसकी मृतप्राय अवस्था का होना है। यह शान्ति-निकेतन की शान्ति नहीं है, किन्तु स्मशान की शान्ति है। तात्पर्य यह है कि यद्यपि आजकल भारत में एक राज्य है, किन्तु यह बात अस्वाभाविक है। भारत का एक स्वाभाविक राज्य नहीं हो सकता।

भारतवर्ष में प्रत्येक प्रकार के हानिलाभ की विभिन्नता है

भारतवर्ष की भाषा तथा राज्य-सम्बन्धी एकता के प्रश्न पर विचार करने के उपरान्त राष्ट्र के तीसरे मुख्य लक्षण—हानिलाभ की एकता—पर विचार करना अनुचित न होगा। व्यक्तिगत, सामाजिक तथा प्रादेशिक हानि-लाभ की जितनी विभिन्नता भारत में मिलती है, उतनी कदाचित् ही किसी अन्य एक देश कहलाने वाले भूमि-भाग में मिलती हो। वर्तमान समय में भारत में व्यक्तिगत स्वार्थ की मात्रा दिन दिन बढ़ती जा रही है। इसका दृश्य घरों में विशेष रूप से देखने को मिलता है। जहाँ धन अथवा भूमि के लिए सहोदर भाइयों के आपस में लड़ने के सहस्रों उदाहरण मिलते हो, जहाँ पति-पत्नी, सास-बहू तथा पिता पुत्र की पारस्परिक कलह एक साधारण बात मानी जाती हो, तथा जहाँ पड़ोसी पर विपत्ति पड़ने पर दूसरा पड़ोसी हँसता