पृष्ठ:हिंदी राष्ट्र या सूबा हिंदुस्तान.pdf/३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
२९
क्या भारत एक राष्ट्र है?
 

शियों को भारत पर अधिकार करने में सहायता मिली। युद्ध का कार्य्य क्षत्रिय जाति का माना जाता था। देश की रक्षा के लिए तो नहीं, किन्तु अपने राज्यों की रक्षा के लिए ये क्षत्रिय जान तोड़ कर विदेशियों से लड़ते थे। यदि युद्ध में क्षत्रियों की विजय हुई तब तो ठीक है, नहीं तो इनका राज्य विदेशी छीन लेते थे और बचे हुए क्षत्रिय देश छोड़ कर चले जाते थे। प्रजा चुपचाप विदेशियों के शासन को स्वीकार कर लेती थी। ब्राह्मण कदाचित सोचते थे कि हमारा धर्म तो पठन-पाठन का है। "स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः" क्षत्रिय युद्ध करें। यदि ये हार गये, तो हम क्या कर सकते हैं! किसान सोचते थे कि हमें तो सदा खेती करना और किसी दूसरे को कर देना है—"कोउ नृप होउ हमहि का हानी"। यदि किसान क्षत्रियों को सहायता देते भी और विदेशियों को पराजित करने में सफल होते, तो भी क्या ये विजेता-किसान समाज की दृष्टि में सच्चे राजा, सरदार अथवा सिपाही हो सकते थे? कदापि नहीं। ऐसी अवस्था में ब्राह्मण इन लोगों को क्षत्रिय बन्धु कह कर अपमान करने को उद्यत रहते। क्षत्रिय कहते कि हल की मुठिया छोड़ तलवार की मूंठ पकड़ना क्या कभी किसान को आ सकता है? स्वयं किसान ही इन देश रक्षकों को द्वेष तथा घृणा की दृष्टि से देखत। शूद्रों तथा अन्य "नीच जातों" का तो कहना ही क्या है—इनका तो सदा सेवा करना ही धर्म है।

ये सब केवल कल्पित विचार मात्र नहीं हैं। भारत के