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हिन्दी-राष्ट्र
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यह अर्थ कदापि नहीं हो सकता कि भारत एक देश है। इस तरह तो अफ़्रीका, अमेरिका, आस्ट्रेलिया तथा योरेशिया के द्वीप भी एक दूसरे से बिल्कुल पृथक् हैं, किन्तु इस कारण ये देश नहीं कहलाते।

सम्पूर्ण भरतखण्ड पर विदेशियों का शासन हो जाने के कारण भारत को एक देश मानने का विचार कुछ लोगों के मन में पैठ सा गया है। भारतवर्ष के भिन्न भिन्न देश इन विदेशी साम्राज्यों में प्रान्त कहलाए जाने लगे। आज कल के अंग्रेज़ी साम्राज्य में भी भारत के ये प्रान्त क्षेत्रफल में योरप के देशों के बराबर हैं। भारत के कुछ प्रान्त अपने इस भूले हुए गौरव को फिर याद कर रहे हैं। बंगाल के बड़े बड़े विद्वान, जैसे रवीन्द्रनाथ ठाकुर, अरविंद घोष तथा बंकिमचन्द्र चटर्जी इत्यादि "बंग आमार देश" कहने में गौरव समझते हैं। यह प्रान्तिक संकोच नहीं है, किन्तु स्वाभाविक इच्छा की पूर्ति है।

राष्ट्रीय दृष्टि से भारतवर्ष में धर्म की विभिन्नता

हम देख चुके कि एक राष्ट्र होने के लिए आवश्यक लक्षणभाषा, राज्य, हानि-लाभ तथा देश की अनिवार्य एकताएँ-भारतवर्ष में नहीं हैं। कुछ अन्य गौण बातें हैं, जो राष्ट्रीयता के लिये नितान्त आवश्यक तो नहीं मानी जाती किन्तु उनके होने से राष्ट्र और भी अधिक सुदृढ़ हो जाते हैं। ऊपर बतलाया जा चुका है कि इनमें धर्म (Religion) और वर्ग (Race) की समानतायें मुख्य हैं। स्थूल रूप से धर्म की एकता भारत में है। भारतवर्ष हिन्दू धर्मा