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हिन्दी-राष्ट्र
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भारतवर्ष में वास्तविक राष्ट्रीयता के भाव का अभाव

वर्तमान समय में राष्ट्रीय लहर का सम्पूर्ण भारत में घूम जाना स्वाभाविक है, किन्तु यह लक्षण चिरस्थायी नहीं है। जिस दिन भारत के शासन में परिवर्तन हुआ उसी दिन इसका यह रूप पलट जायगा। यदि तनिक ध्यान देकर देखिये, तो समस्त भारत के पूजनीय राष्ट्रीय वीर तक एक नहीं रहे हैं। महाराष्ट्र पति शिवाजी के नाम से बंगाली किसान के रोंगटे हर्ष से नहीं, कदाचित् भय से अवश्य खड़े हो सकते हैं पंजाब केसरी महाराज रणजीत सिंह को महाराष्ट्र बालक नहीं जानता, और न उसके हृदय में उस नाम से उल्लास ही होता है। यदि धार्मिक तथा साहित्यिक पुरुषों पर दृष्टि डाली जाय, तो यह विभिन्नता और भी स्पष्ट हो जाती है। गुरुनानक और चैतन्य स्वामी का नाम क्या भारत के प्रत्येक भाग में बराबर आदर से लिया जाता है? तुकाराम और रामदास जहाँ वेद वाक्य की तरह पढ़े जाते हैं, वहाँ चंडीदास और विद्यापति को कोई नाम से भी नहीं जानता। यदि वर्तमान नेताओं की ओर ध्यान दें, तो भी यह प्रादेशिक भाव मिलेगा। भारत की वर्तमान राष्ट्रीय लहर की नींव गहरी नहीं है।

राष्ट्र के सम्पूर्ण लक्षणों को भारत पर सूक्ष्म रूप से घटाते हुए हम इस परिणाम पर पहुँचते हैं कि भारत एक राष्ट्र नहीं है, बल्कि योरप तथा अन्य भूमि भागों के समान एक विशाल उपद्वीप खण्ड