पृष्ठ:हिंदी राष्ट्र या सूबा हिंदुस्तान.pdf/५

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पीछे विचार करना ही पड़ेगा अतः पुस्तक का प्रकाशन स्थगित कर देना मैंने उचित नहीं समझा।

हिन्दी-भाषा-भाषियों की सभ्यता के इतिहास के संबंध में भी मेरे कुछ विचार हैं जिन्हें, यदि अवकाश मिला तो, कभी भविष्य में देशवासियों के संमुख रक्खूंगा।

प्रयाग,
धीरेन्द्र वर्म्मा
 

२० अगस्त, १९३०