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३.. हिन्दी राष्ट्र
हिन्दी बोलने वाले हमारे सच्चे देशवासी हैं

अब यह स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि जब भारतवर्ष एक राष्ट्र नहीं है तब हम किसे अपना राष्ट्र मानें। इसका उत्तर देना अब कठिन नहीं है। साधारणतया हम कह सकते हैं कि राष्ट्र की एक मुख्य तथा प्रत्यक्ष पहिचान भाषा की एकता है, अतः भारत के जितने भूमि-भाग में हमारी भाषा, अर्थात् हिन्दी या हिन्दुस्तानी मातृ-भाषा की तरह बोली और समझी जाती हो वह हमारा राष्ट्र है। इस परिभाषा के अनुसार दक्षिण भारत के तामिल, तेलगू, मलयायम तथा कनारी इत्यादि द्राविड़ भाषा बोलने वाले भूमिभाग तो निकल ही जावेंगे; साथ ही आसामी, बंगाली, उड़िया, मराठी, गुजराती तथा सिन्धी प्रदेश भी छोड़ने पड़ेंगे। पंजाब में नगरों में पढ़े लिखे लोग लिखने पढ़ने में हिन्दुस्तानी का व्यवहार अवश्य करते हैं, किन्तु साधारण जन-समुदाय तथा वास्तव में इन नगर वासियों की भी मातृभाषा पंजाबी ही है, हिन्दुस्तानी नहीं। पंजाब के गाँव का आदमी हिन्दुस्तानी भली प्रकार समझ भी नहीं सकता, बोल सकना तो दूर की बात है। अतः पंजाब की भी पृथक् गिनती करनी पड़ेगी। काश्मीर से लेकर भूटान तक के हिमालय के प्रदेशों में बहुत सी भिन्न भिन्न पहाड़ी भाषाएँ