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हिन्दी-राष्ट्र
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गढ़ी इन तीन को पूर्वी हिन्दी नाम दिया गया है। अतः भाषासर्वे के आधार पर भारत के इस विस्तृत मध्य भाग में चार नहीं तो तीन भाषायें अवश्य ही माननी पड़ेंगी। यदि भाषा के स्थान पर बोलियों के आधार पर विभाग करने के सिद्धान्त को माना जाय तब तो पन्द्रह सोलह विभाग करने पड़ेंगे।

किन्तु राजनीति-शास्त्र में राष्ट्र की एक भाषा होने के सिद्धान्त का तात्पर्य भाषा-शास्त्र के सिद्धान्त से भिन्न है। व्याकरण के सूक्ष्म रूपों के आधार पर भाषाओं तथा बोलियों का पृथक्करण भाषा-शास्त्र का क्षेत्र है और यह वहाँ ही शोभा देता है। राजनीति-शास्त्र में एक भाषा-भाषी लोगों का एक राष्ट्र में होने का केवल इतना ही तात्पर्य है कि राष्ट्र में छोटे से बड़े तक, तथा बच्चों से बूढ़े तक सब लोग एक दूसरे की बात को स्वाभाविक रीति से अच्छी तरह समझ, सकें, जिससे व्यर्थं को किसी कृत्रिम माध्यम का सहारा लेने की आवश्यकता न पड़े। इस अर्थ में राजस्थान से लेकर बिहार तक तथा सरहिन्द से लेकर छत्तीसगढ़ तक की भाषा एक ही कही जा सकती है। इस समस्त भूमि-भाग में व्यवहार की केवल एक ही भाषा हिन्दुस्तानी है, जिसका यहाँ की बोलियों से इतना निकट का सम्बन्ध है कि किसी भी बोली के बोलने वाले से इस माध्यम के द्वारा बड़ी सरलता से बात चीत की जा सकती है तथा उस मनुष्य की बोली भी बहुत कुछ समझ में आ जाती है। हिन्दी-भाषा-भाषी प्रदेश के सम्बन्ध में तो यह प्रायः निश्चयात्मक रूप से कहा जा सकता है। मेरठ, रायबरेली