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हिन्दी राष्ट्र
 

और रायपुर के किसान एक दूसरे से भली प्रकार बातचीत कर सकते हैं, किन्तु बिहार और राजस्थान के सम्बन्ध में यह बात यकायक नहीं कही जा सकती। बीकानेर का किसान भागलपुर के किसान की बोली कदाचित् ठीक ठीक नहीं समझ सकेगा। इनकी बोलियाँ एक दूसरे से इतनी दूर हो गई हैं कि उनमें साम्य कम है और विभिन्नता अधिक। इस सम्बन्ध में भली प्रकार परीक्षा होनी चाहिए। यदि यह बात ठीक निकले तो भाषासर्वे के अनुसार बिहार और राजस्थान का हिन्दी भूमि-भाग के साथ रखने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए। इस अवस्था में एक बात और करनी होंगी। बिहार और राजस्थान को अपनी अपनी बोलियों में से एक एक को छाँट कर उसे अपनी साहित्यिक-भाषा बनानी होंगी। यह सब जगह होता आया है। हिन्दी के भूमिभाग में मेरठ के चारों ओर की बोली आजकल सम्पूर्ण हिन्दीभाषा-भाषियों की सर्वमान्य भाषा हो गई है। प्रायः सौ वर्ष पूर्व तक साहित्य की दृष्टि से यह स्थान मथुरा की बोली ब्रजभाषा को मिला हुआ था।

इस सब से तात्पर्य यह निकला कि भारत के इस बड़े भूमिभाग में भी पूर्ण रूप से भाषा का ऐक्य नहीं है। प्राचीन "मध्य देश" की भाषा अवश्य एक हिन्दी या हिन्दुस्तानी है, अतः इतने भूमि-भाग में राष्ट्र का प्रथम लक्षण-भाषा का ऐक्य-अवश्य घटित होता हैं। तब इतना भूमि-भाग तो निस्सन्देह अपना राष्ट्र कहा जा सकता है। बिहारी और राजस्थानी भाषाओं के भूमि-