भागों के सम्बन्ध में यह बात इतने निश्चयात्मक रूप ले नहीं कही
जा सकती । साधारण रूप से यह भूमि-भाग भी हिन्दी राष्ट्र के
ही अन्तर्गत हैं क्योंकि इन भूमि-भागों की जनता ने भी हिन्दी या
हिन्दुस्तानी के ही साहित्यिक भाषा के रूप में अपना रक्खा है।
हिन्दी भाषा-भाषी एक शासन में होने चाहिये
राष्ट्र के लक्षणों में भाषा की एकता मुख्य अवश्य है, किन्तु
साथ ही अन्य लक्षणों का होना भी आवश्यक है। भाषा के
बाद राज्य के ऐक्य का स्थान है। आज कल वैसे तो बंगाल से
लेकर सिन्ध तक तथा पंजाब से लेकर केरल तक का प्रायः
सम्पूर्ण भारत एक ब्रिटिश शासन में ही है, किन्तु साथ ही
संसार के स्वतन्त्र राष्ट्रों के टक्कर के ब्रिटिश-भारत के प्रान्तिक
विभाग इस शासन के ऐज्य में कुछ कठिनाई अवश्य उपस्थित
करते हैं। इनके अतिरिक्त सैकड़ों देशी राज्य भी भारत के इस
एक छत्राधिपत्य में कुछ बाधक होते हैं। इन प्रान्तों और देशी
राज्यों के विभागों के कारण हिन्दी-भाषा-भाषी लोग भी एक
शासन में नहीं हैं। वे ब्रिटिश भारत के संयुक्त-प्रान्त, मध्य प्राप्त
और पंजाब तथा मध्य-भारत और राजस्थान के कुछ देशी राज्यों
में जुटे हुए हैं। यह अवस्था तब है जब बिहार और राजस्थान
की गिनती नहीं की है। इनमें बिहार को प्रायः एक प्रान्तिक
शासन में हो गया है, किन्तु राजस्थान का एक शासन में
होना दूर की बात है। राजस्थान में छोटे बड़े शासकों के रहने
पर भी उन सब के ऊपर एक दृढ़ शासन के बन्धन के होने से