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हिन्दी-राष्ट्र
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रक्षा कर लेता था। उस समय लोग तीर-कमान और तलवारों से लड़ते थे। अब आजकल सत्तर मील तक मार करने वाली तोपों, हवाई जहाज़ों और बेतार की तारवर्क़ी के वैज्ञानिक युग में फ़्रांन्स और इंग्लैण्ड जैसे सुव्यवस्थित शक्ति रखने वाले विशाल राष्ट्र भी अपने को सुरक्षित नहीं समझते, हम जर्जरति लोगों का तो कहना ही क्या है! हमारे नये शासन का रूप विस्तार में तो यहाँ के प्राचीन जनपदों से बड़ा होगा ही, शासन प्रणाली में भी आवश्यकतानुसार उनसे भिन्न होगा। जो हो वर्तमान अवस्था अब बहुत दिनों नहीं ठहर सकती। हिन्दीभाषा-भाषी लोगों का शासन के लिये एक स्वाभाविक विभाग—चाहे वह इस समय ब्रिटिश भारत के प्रान्त के रूप में हो अथवा कांग्रेस के सूबे के रूप में—शीघ्र ही बनना चाहिये। यह मानना पड़ेगा कि राष्ट्र का दूसरा लक्षण, एक राज्य का होना, हिन्दी भाषा-भाषी लोगों पर बंगाल इत्यादि की तरह एक प्रान्त के रूप में भी अभी घटित नहीं होता। तभी तो अपने राष्ट्र के स्वरूप का दर्शन भी नहीं होता। भाषा के आधार पर प्रान्त बनाने, पर ही शासन विभाग के ऐक्य से होने वाले लाभों का कुछ कुछ दिग्दर्शन हो सकेगा।

हिन्दी-भाषा-भाषियों का हानिलाभ बहुत बातों में शेष भारत से भिन्न है।

जब एक भाषा होने के स्पष्ट ऐक्य को ही अपने लोग नहीं