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हिंदी राष्ट्र
 

लिये हिमालय प्रदेश को तो छोड़ देना ही पड़ेगा। शेष मैदान में पंजाब की भूमि भी भिन्न है। गंगा का मैदान अवश्य एक है। हिमालय से लेकर विन्ध्य की पथरीली भूमि के आरम्भ होने तक इस मैदान की चौड़ाई तो अधिक नहीं है, किन्तु लम्बाई अवश्य अधिक है। भागलपुर के भागे जिस स्थान से गंगा समुद्र से मिलने के लिये दक्षिण की ओर झुकती है गंगा के मुहाने का उतना समभाग बंगाल देश के रूप में पृथक् है ही, किन्तु शेष अंश के भी कदाचित् दो भाग किये जा सकते हैं। ये दो भाग आज कल संयुक्त-प्रान्त और बिहार के रूप में देख पड़ते हैं, यद्यपि इनकी सीमा वैज्ञानिक रीति से नहीं बटी है।

गंगा के मैदान के दक्षिण का विन्ध्य का भूमि-भाग प्राकृतिक दृष्टि से इस मैदान से भिन्न अवश्य है, किन्तु गंगा की घाटी के लोगों के लिये यह दुर्गम नहीं है। आगरा या प्रयाग से ग्वालियर, रीवाँ अथवा सागर या जबलपुर पहुँचना आजकल के वैज्ञानिक युग में ऐसा ही सरल है जैसे आगरे से प्रयाग पहुँचना। अतः विन्ध्य के इस भाग को गंगा की घाटी से पृथक् भिन्न देश समझना आवश्यक नहीं है। इसके अतिरिक्त यहाँ के लोग गंगा की घाटी के ही रहने वाले हैं। ये अभी कुछ ही दिनों से वहाँ जाकर बसे हैं। भाषा, रीति-रिवाज, धर्म तथा अन्य सब बातों में ये दोनों एक ही हैं। नर्मदा के दक्षिण का कुछ भाग तथा महानदी के आरम्भ की घाटी का कुछ भाग-छत्तीसगढ़ प्रदेश-अवश्य कुछ दूर पड़ता है, किन्तु क्योंकि यहाँ भी हिन्दी-भाषा-भाषी बस रहे हैं,