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हिन्दी राष्ट्र
 

की भाषा, राज्य तथा हानि-लाभ इत्यादि सभी बातों पर पड़ता है। अपने देश में हिन्दू मुसलमान दोनों के आदर्श इन सब बातों में थोड़े बहुत भिन्न तो हैं ही, ऊपर से स्वार्थी लोगों के प्रोत्साहन से इस पृथकता ने और भी स्पष्ट रूप धारण कर लिया है। इस भेद का बनावटी अंश तो निकाला जा सकता है किन्तु स्वाभाविक विभिन्नता का कुछ अंश अवश्य रह जायगा। इसका कोई उपाय नहीं, सिवा इसके कि ये दोनों धर्म एक हो जायें। यह बात संपूर्णतया असंभव नहीं है। एक समय हमारे सम्पूर्ण देश के लोग बौद्ध-धर्मावलम्बी हो गये थे, किन्तु अब तो बौद्ध आदमी ढूंढने पर भी कठिनाई से मिलता है। धर्म का ऐक्य राष्ट्र निर्माण के लिये नितान्त आवश्यक नहीं है, यद्यपि इसके होने से लाभ बहुत हैं।

हिन्दी-भाषा-भाषी एक वर्ग के हैं

वर्ग की एकता हिन्दी-भाषा-भाषी लोगों में थोड़ी बहुत अवश्य पाई जाती है। गंगा की घाटी की जनता प्रायः एक ही से शरीर की बनावट की है यद्यपि पश्चिम से पूर्व की ओर धीरे धोर अन्तर अवश्य होता गया है। योरपीय विद्वानों के अनुसन्धान के अनुसार 'हिन्दुस्तानी' आर्य-द्राविड़ वर्ग के हैं। राजस्थान के लोगों को गिनती आर्य वर्ग में की गई है। बिहार तथा वर्तमान मध्य प्रान्त में भी प्रायः आर्य-द्राविड़ वर्ग के ही लोग हैं। अन्तर केवल इतना ही है कि इनमें क्रम से मंगोल तथा द्राविड़ अंश अधिक होता गया है।