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४. सूबा हिन्दुस्तान
कांग्रेस द्वारा भारत को सूबों में विभक्त करने का सिद्धान्त

कांग्रेस महासभा ने भाषाओं की विभिन्नता के आधार पर भारत को प्रान्तों अथवा सूबों में विभक्त करने का यत्न किया है। एक भाषा बोलने वाले लोगों के एक शासन में होने से अनेक प्रकार की सुविधाएँ रहती हैं। इस प्रकार के स्वाभाविक विभाग प्रजा की शक्ति के विकास के लिए भी अत्यन्त हितकर होते हैं। भारत की अंग्रेज़ी सरकार का ध्यान इस ओर नहीं था। अब कुछ दिनों से लोगों को जाग्रति के कारण अंग्रेज़ी सरकार को भी इस ओर कुछ ध्यान देना पड़ रहा है। मद्रास प्रान्त में आन्ध्र लोग अलग होने का आन्दोलन कर रहे हैं। बिहार और उड़ीसा के अलग होने का प्रस्ताव भी उठ रहा है। इभर सिंध और कर्नाटक भी कुछ चेत रहे हैं। जो हो, महासभा ने भाषा के अनुसार सूबों के विभाग करने के सिद्धान्त को मान लिया है। महासभा के सूबे इसी सिद्धान्त को ध्यान में रख कर किये गये हैं, अतः ये विभाग भारत के वर्तमान प्रान्तों की अपेक्षा कहीं अधिक संतोषजनक मान्ने जाते हैं।

दक्षिण भारत के चार द्राविड़ सूबे—तामिल, आन्ध्र, केरल तथा कर्नाटक—पूर्ण रूप से स्वाभाविक हैं। वर्तमान मद्रास प्रान्त