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सूबा हिन्दुस्तान
 

के साथ इनको मिलाने से इस नये सिद्धान्त के अनुसार विभाग करने के लाभ विदित होते हैं। इन नये विभागों से उन सूबों की प्रजा भी पूर्ण रूप से सन्तुष्ट है। आन्ध्र और उड़ीसा की सीमा पर कुछ आपस का झगड़ा था, लेकिन वह भी अब लिपट गया है। भारत के पूर्व के उड़ीसा, बंगाल तथा आसाम के सूबे भी ठीक हैं। दो एक ज़िलों के इधर उधर करने की आवश्यकता कदाचित् पड़े, और यह कभी भी हो सकता है। पश्चिम भारत के महाराष्ट्र, गुजरात, सिन्ध तथा पंजाब के सूबों के सम्बन्ध में भी कुछ विशेष परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है। बम्बई नगर का सूबा उसकी विशेष स्थिति के कारण अलग माना जा सकता है, परन्तु मराठी मध्यप्रान्त तथा बरार के पृथक् सूबे रखना ठीक नहीं है। इन सूबों को भाषा मराठी है, अतः इनका महाराष्ट्र के साथ रहना स्वाभाविक है। इनके अलए सूबे रखने में कदाचित् वर्तमान प्रान्तीय विभागों का प्रभाव ही मुख्य कारण है।

हिन्दी-भाषा-भाषियों के संबंध में यह सिद्धान्त झूला दिया गया।

तो भी यहाँ तक के भारत के विभाग प्रायः सन्तोषजनक हैं। केवल थोड़े से मोटे मोटे हेर फेर करने की आवश्यकता होगी, जो बड़ी आसानी से किये जा सकेंगे। किन्तु भारत के शेष हिन्दी भाषा-भाषी मध्यभाग के सूबों के विभाग महासभा ने भी बड़ी अस्वाभाविक रीति से किये हैं। अब तक भाषा के सिद्धान्त को मानते