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हिन्दी-राष्ट्र
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हुए यहाँ आकर न मालूम उसे एक साथ क्यों भुला दिया गया। मुख्य कारण वर्तमान प्रान्तों का प्रभाव मालूम होता है। इसके अतिरिक्त एक अन्य विशेष कारण भी हैं। भारत के इस मध्य भाग को जनता बंगाल अथवा आन्ध्र के लोगों की तरह अपनी एकता को—जो कम से कम ठीक ठीक पृथक् सूबों के रूप में इकट्ठे होने में तो प्रकट होनी ही चाहिए—तनिक भी अनुभव नहीं करती। कहावत है, बिना रोये माता भी बच्चे को दूध नहीं पिलाती, फिर शुष्कहृदय राजनीतिज्ञों से क्या आशा की जा सकती है? सम्भव है कि इन विभागों के करने वालों का, भारत के इस मध्य भाग के सम्बन्ध में अल्प ज्ञान भी इस गड़बड़ी का कारण हो। जो हो, फल यह हुआ है कि संयुक्त प्रान्त, हिन्दुस्तानी मध्य प्रान्त, बिहार, दिल्ली तथा अजमेर के सूबों की भाषा कांग्रेस के रजिस्टर में एक-हिंदुस्तानी-लिखी होने पर भी जो पांच सूबे अलग अलग रक्खे गये हैं और इनके विभाग भी बिना किसी स्वाभाविक नियम के किये गये हैं। भारत के इस हिंदुस्तानी भाषाभाषी मध्यभाग को स्वाभाविक रीति से सूबों में किस प्रकार विभक्त किया जा सकता है, जिससे यहाँ की जनता भी बंगाल, आन्ध्र, गुजरात तथा महाराष्ट्र आदि के लोगों की तरह अपनी स्वतन्त्र स्थिति को अनुभव करते हुये भावी संयुक्तभारत के बनाने में सहायक हो सके—इस समय इसी सम्बन्ध में कुछ विस्तार से विचार, करना है।