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सूबा हिन्दुस्तान
 

 

प्रान्तीय विभाग के सम्बन्ध में हिन्दी-भाषा-भाषियों का आदर्श

यदि केवल भाषा ही सूबों के इन विभागों के करने की कसौटी हो, तो भारत का यह सम्पूर्ण मध्यभाग एक सूबा होना चाहिए क्योंकि इसकी भाषा एक-हिन्दुस्तानी-है। इस प्रस्ताव के विरुद्ध केवल एक बात कही जा सकती है और वह यह कि भारत का यह सूबा बहुत बड़ा हो जायगा—इसका प्रबन्ध करना दुस्तर होगा। किन्तु इस युक्ति को देकर, महासभा अथवा अन्य सूबों को हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं हो सकता। यदि महासभा भाषा के अनुसार सूबों के विभागों के सिद्धान्त को मानती है—उसका ऐसा मानना ठीक भी है—और यदि ये सब हिन्दुस्तानी बोलनेवाले लोग एक सूबे में रहना चाहते हैं, तो कोई कारण नहीं कि शासन की कठिनाई का बहाना करके इन हिन्दुस्तानी बोलनेवाले लोगों को कई भागों में विभक्त कर दिया जाय। यह तो ठीक वैसी ही युक्ति होगी, जैसी बंगाल के दो टुकड़े करने के लिये भारत की अंग्रेज़ी सरकार देती थी। यदि किसी का परिवार बहुत बड़ा हो, परन्तु उसके सब लोग एक साथ रहना चाहते हों, तो दूसरे छोटे छोटे परिवारों का यह कह कर उस बड़े परिवार को ज़बर्दस्ती विभक्त करना, कि तुम्हें अपना प्रबन्ध करने में कठिनाई पड़ेगी इस लिये तुम भी हमारी तरह छोटे छोटे घर बना लो, कहाँ तक न्याय-सङ्गत होगा! इस संबंध