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हिन्दी राष्ट्र
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में एक बात मुख्य है-उस बड़े परिवार के लोगों की एक में रहने की इच्छा तथा शक्ति। यह सच है कि भारत का यह मध्य का सूबा भारत के अन्य सूबों से क्षेत्रफल तथा जनसंख्या दोनों में सब से बड़ा होगा। कदाचित् संसार में इसकी टक्कर का कोई भी राष्ट्र न निकले, किन्तु किसी का बड़ा होना उसके भिन्न छिन्न किये जाने का कारण नहीं होना चाहिए। महासभा जब एक भाषा-भाषी होने के कारण ४½ करोड़ जनसंख्या का बंगाल का सूबा तथा साथ ही कुछ लाख प्राणियों का केरल का सूबा रख सकती है, तो उसे प्रायः १० करोड़ के इस सूबे के रखने में भी कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। वास्तव में यह हिन्दुस्तानी भाषा बोलनेवालों की इच्छा तथा शक्ति पर ही अवलम्बित है। इन दोनों के होने पर महासभा क्या, संसार को कोई भी शक्ति इन्हें अलग नहीं कर सकती।

अन्य छोटे छोटे सूबों को एक बात अवश्य खटकने वाली हो सकती है। उन्हें यह भय हो सकता है कि इतने विशाल सूबे के होने से इसके प्रतिनिधियों की संख्या महासभा में इतनी अधिक हो जावेगी कि यह अकेला ही जो चाहे सो करा सकेगा। यह युक्ति भी ठीक नहीं है। वर्तमान अवस्था में भी केरल, अजमेर तथा दिल्ली जैसे छोटे छोटे सूबों की स्थिति बंगाल, महाराष्ट्र अथवा पंजाब के आगे ठीक वैसी ही है, जैसी इस बड़े सूबे के हो जाने से आज कल के इन बड़े सूबों की हो सकती है। यह बात तो आपस के विश्वास पर छोड़नी पड़ेगी। यदि ऐसा ही