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सूबा हिन्दुस्तान
 

जनपदों में बड़ा भारी सादृश्य[१] है। ऐसा मालूम पड़ता है कि प्रत्येक बोली का प्रदेश एक एक जनपद का प्रतिनिधि-रूप हो। बोलियोंके ये विभाग क्रम से निम्नलिखित जनपदों का स्मरण कराते हैं—कुरु, कुरुजांगल, शूरसेन, पञ्चाल, चेदि, कोसल, वत्स, महाकोसल, काशी, मिथिला, मगध, अवन्ति, वत्स्य और मरुदेश। गढ़वाल और कमायूँ में कोई प्राचीन प्रसिद्ध जनपद नहीं थे। बोलियों के आधार पर इस बड़े सूबे के प्रदेशों की रचना करने के लिए यह प्राचीन जनपदों के साथ सादृश्य क्या एक बड़े आकर्षण का कारण नहीं है?

सूबे के इन प्रदेशों को कई प्रान्तों के रूप में अलग अलग इकट्ठा किया जा सकता है और इन प्रान्तों के वर्तमान नाम रहने दिये जा सकते हैं। जैसे मैथिली और मगही बोलियों के प्रदेशों का एक प्रान्त बिहार नाम से रह सकता है। इसी प्रकार संयुक्त प्रान्त, मध्यप्रान्त तथा राजस्थान प्रान्त रह सकते हैं। सूबे के अन्दर इस तरह के प्रान्तों के रखने का प्रश्न शासन की सुविधा के लिए उठाया जा सकता है, किन्तु इस से भारी हानि यह हो सकती है कि इस प्रान्तिक भाव के बलिष्ठ हो जाने से सूबे की एकता में बाधा पड़ने का भय रहेगा। अमेरिका के संयुक्त राज्य की तरह प्राचीन जनपदों के नये रूप अर्थात् बोलियों


  1. इस सम्बन्ध में विस्तृत विवेचन के लिए नागरी प्रचारिणी-पत्रिका, भाग ३, अंक ४ में "हिन्दुस्तान की वर्तमान बोलियां और उनका प्राचीन जनपदों से साद्दश्य" शीर्षक मेरा लेख देखिये।लेखक