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हिन्दी राष्ट्र
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के प्रदेशों और वर्तमान देशी राज्यों का एक सूबे के रूप में संगठन बड़ा सुन्दर हो सकता है। वर्तमान ज़िलों और प्रान्त के बीच में कमिश्नरियों की तरह इन प्रान्तें की रचना करना व्यर्थ है, कदाचित् हानिकर भी हो।

हिन्दी-भाषा-भाषियों को व्यवहारिक ढंग से सूबों में बांटना

सम्भव है इतना विशाल कार्य हाथ में लेने का साहस लोगों में न हो, अथवा इस सम्बन्ध में एकमत न हो। यदि भाई भाई अलग अलग घर करना चाहें, तो इसमें ज़बरदस्ती करना बेकार है। आपस में समझौते से बटवारा कर लेना लड़ कर जुदा होने से कहीं अच्छा है। यदि इस बड़े सूबे को यहाँ के लोगों की इच्छा के कारण कई सूबों में विभक्त करना ही पड़े, तो इसमें भी भाषा ही का आधार रखना उचित होगा। यह सदा ध्यान में रखना चाहिए कि इस सम्बन्ध में कांग्रेस का भी सिद्धान्त यही है। भाषासर्वे में दिये हुए भाषाओं के वैज्ञानिक पृथक्करण के अनुसार भारत के इस मध्य भाग की बोलियाँ तीन मुख्य भाषाओं में विभक्त की गयी हैं। भोजपुरी, मैथिली और मगही बोलियों को बिहारी भाषा का नाम दिया गया है। मालवी, जयपुरी तथा मारवाड़ी बोलियों को राजस्थानी भाषा के नाम से गिना है। शेष आठ बोलियों को हिन्दी भाषा माना है। ऊपर बतलाया जा चुका है कि हिन्दी के भी पूर्वी और पश्चिमी दो भाग किये गये हैं। पश्चिमी हिन्दी में बांगडू, खड़ीबोली, कन्नौजी, ब्रजभाषा और