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सूबा हिन्दुस्तान
 

परन्तु इन गौण प्रश्नों पर अभी अधिक विस्तार से विचार करने की आवश्यकता नहीं है।

यह सूबा हिन्दुस्तान प्राचीन काल के "मध्यदेश"[१] नाम के प्रसिद्ध भूमि-भाग के प्रायः बिलकुल बराबर होगा।

इस सूबे का क्षेत्र-फल २ लाख वर्ग मील से कम तथा जनसंख्या प्रायः ५ करोड़ होगी। इस अवस्था में इस सूबे के बहुत बड़े होने का बहाना भी नहीं हो सकता है। शासन की सुविधा के लिए बोलियों के आधार पर इस सूबे को प्रदेशों में विभक्त करना तो आवश्यक तथा उचित ही होगा। साथ ही इन प्रदेशों को प्रान्तों में विभक्त करने का प्रश्न भी उठ सकता है। भोजपुरी भूमिभाग और अवध का एक पूर्वी प्रान्त बनाया जा सकता है। कन्नौजी, ब्रजभाषा, खड़ीबोली तथा बांगडू बोलियों के प्रदेशों का एक पश्चिमी प्रान्त बन सकता है। तथा यमुना के दक्षिण में बुन्देलखण्ड, बघेलखण्ड और छत्तीसगढ़, दक्षिण प्रान्त के नाम से एक जगह हो सकते हैं। किन्तु सूबा हिन्दुस्तान में इस प्रकार के प्रान्त बनाना अनावश्यक है इससे सूबे की एकता में बाधा पड़ने की सम्भावना हो सकती है।


  1. प्राचीन मध्यदेश के सम्बन्ध में विशेष रूप से जानने के लिए नागरी प्रचारिणी-पत्रिका भाग ३ अंक १ में "मध्य-देश का विकास" शीर्षक मेरा लेख देखिये।

    —लेखक