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हिन्दी-राष्ट्र
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सूबा हिन्दुस्तान के टुकड़े करना आत्मघात करने के बराबर होगा

अंग्रेज़ी सरकार द्वारा केवल संयोगवश किये गये वर्तमान प्रान्तों के झूठे मोह में फँस कर एक तीसरा प्रस्ताव यह भी हो सकता है कि भावी सूबा हिन्दुस्तान के ये तीन प्रान्त क्यों न पृथक् पृथक् सूबे मान लिये जायँ। सम्भव है, आजकल बहुत से लोगों को यह प्रस्ताव रुचिकर हो। इस क्रम के अनुसार संयुक्तप्रान्त को तोड़कर उसके दो पृथक् सूबे बनाने होंगे। अवध और काशी का पूर्वी-प्रान्त -सूबा अवध या अन्य किसी नाम से प्रसिद्ध किया जा सकता है, तथा शेष आगरा प्रान्त और देहली तथा सरहिन्द को मिला कर बनाये हुये पश्चिमी प्रान्त को सूबा आगरा या देहली का नाम दिया जा सकता है। हिन्दुस्तानी मध्यप्रान्त, मध्यभारत के रीवाँ आदि के देशी राज्य, तथा यमुना के दक्षिण के संयुक्त प्रान्त के ज़िलों को मिलाकर एक तीसरा सूबा महाकोसल, मध्यप्रान्त, सूबा मध्यभारत, या किसी अन्य नाम से बनाया जा सकता है। अपने मूल हिन्दुस्तानी लोगों को इस प्रकार से सूबों में विभक्त करने में सबसे बड़ी बाधा तो यह होगी कि यह क्रम भाषा के आधार पर न होने के कारण अस्वाभाविक और काँग्रेस के सिद्धान्त के विरुद्ध होगा। दूसरे, इनमें कोई ऐसा ऐतिहासिक क्रम भी न होगा जिससे लोग अपने सूबों की प्राचीनता पर गर्व कर सकें और उसके कारण गौरव का अनुभव करें। तीसरे, एक ही भाषा-भाषी लोगों के विभक्त हो जाने से