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सूबा हिन्दुस्तान
 

इनकी शक्ति का भारी अपव्यय तथा ह्रास होगा। व्यर्थ ही तीन शासन के स्वतन्त्रकेन्द्र, तीन प्रान्तीय कौंसिलें तथा तीन साहित्यसम्मेलन आदि बनाने होंगे। इस अवस्था में हम लोगों की शक्ति भारत के अन्य सूबों से बहुत कम हो जावेगी। अभी ही हम लोग बहुत पीछे हैं। इन सब के अतिरिक्त न इन सूबों के ठीक नाम हो सकेंगे और न लोगों के कुछ नाम पड़ सकेंगे। सूबे, भाषा तथा लोगों के नामों का सुन्दर एकीकरण जो बंगप्ल-बंगाली, गुजरातगुजराती तथा पंजाब-पंजाबी इत्यादि में मिलता है क्या आगराआगरी अथवा मध्यप्रान्त-मध्यप्रान्ती में मिल सकेगा? सूबा हिन्दुस्तान को इस तरह आगरा, अवध और मध्यभारत आदि नामों से अनेक पृथक् सूबों में विभक करने में हानि के सिवाय लाभ कुछ भी नहीं देख पड़ता। यत्न तो यह होना चाहिए कि बिहार, राजस्थान और हिन्दुस्तान्त तीनों का एक ही सूबा रहे। ऐसा न करके अपने ही को छिन्न-भिन्न कर डालना आत्मघात करने के बराबर होगा।

हिन्दी भाषा-भाषियों के सोलह प्रान्त

भारत के इस संपूर्ण मध्यभाग का एक और रीति से भी सूबों में विभाग हो सकता है। वह यह कि इसकी सोलह बोलियों के प्रदेश सोलह स्वतन्त्र सूबे हो जावें। बंगाल, महाराष्ट्र तथा पंजाब आदि सूबों की तरह इन सोलहों का भारत सरकार से सीधा सम्बन्ध रहे। सूबा हिन्दुस्तान के तीन पृथक् सूबे करने में जो हानियाँ ऊपर बतलायी गयी हैं, वे यहाँ और भी स्पष्ट रूप से लागू होंगी।